सनातन ज्ञान और वर्तमान का विज्ञान

 भारतीय आध्यात्म:

हमारे पुरातन शास्त्र (चार वेद), पुराण, उपनिषद, गीता रामायण (वाल्मीकि द्वारा रचित) व ऋषि मुनियों द्वारा रचित अन्यान्य ज्ञान ग्रंथ तदनुसार रामचरित मानस आदि में ब्रह्म को अनंत अर्थात जिसका न आदि है न कोई अंत कहा गया है। ब्रह्मांड के आस्तित्व अतः उसके होने का अनुभव (ज्ञान) तो किया जा सकता है किंतु उसको व्यक्त नहीं किया जा सकता है इसलिए उसे अव्यक्त (भाषातीत) कह कर नेति नेति कहा गया। जिसका अभिप्राय है कि वह केवल अनुभवगम्य है,वर्णातीत है, जो आत्म पोषित है, परमसत्य है, नित्य नूतन है अतः सनातन है। 

यह हम सब की जिज्ञासा हो सकती है कि जो ब्रह्म इतना विराट है जो बुद्धि से परे व इंद्रियातीत है तब इसके आस्तित्व को कैसे जाना गया अर्थात कोई कैसे जानेगा। अस्तु:

जो बुद्धि का विषय नहीं तथा जो इंद्रिय का भी विषय नहीं है वह स्थूल (जड़) नाशवान शरीर से परे केवल आत्मा का विषय है। क्योंकि देह में बध्य जीवात्मा जब त्याग और तप के द्वारा देहाभिमान से परे साधक बन उस परमतत्व् को अपना साध्य मानकर साधन (आराधन) करता है तो वह उस अनंत अविनाशी शाश्वत सनातन परमात्मा का अनुभव करता है, यह उसके जीवन में परमसत्य के उद्घाटित होने जैसा है लेकिन यह इति नहीं अपितु परमशांति में कर्ता भाव से मुक्त अनंत कर्मो की अनंत यात्रा है। 

वह कर्मयोगी बन अनंत कर्म करते हुए प्राणी मात्र के कल्याण के लिए रत रहता है लेकिन अंतश् मै वह कुछ नहीं करता है। यहां वो ईश्वर नहीं होता लेकिन विशुद्द आत्म भाव से निर्विकारी, निर्लिप्त, निरभिमानी, शांत स्थिर चित्त होकर निरंतर परम मैं स्थित रहता है यह विलक्षण अवस्था है। 


विज्ञान की आज की खोज:

आज विज्ञान भी अपनी खोज के माध्यम से इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि ब्रह्मांड में असंख्य तारे, गैलेक्सियाँ जो हमारी पृथ्वी से आकर मै बहुत बड़े हैं और पृथ्वी से बीस बीस हजार प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं। इन में से कई गैलेक्सियाँ अरबों प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं। 

आगे विज्ञान की खोज के अनुसार ऐसे अनेक ब्रह्मांड हैं जिनकी गणना नहीं की जा सकती है। अतः भौतिक विज्ञान भी ब्रह्म को अनंत मानता है जिसे हमारे यहाँ हजारों वर्ष पूर्व शास्त्रों में लिख दिया था। 

यह ज्ञान शाश्वत है जो कभी मिट नहीं सकता जिसे सनातन कहते हैं जो हमारे लिए गौरव की बात है। 



Comments

  1. बिलकुल सत्य है भौतिक विज्ञान की अपनी सीमाएं हैं। पर योग में समाधि की अवस्था ऐसी स्थिति है जहां मनुष्य का सूक्ष्म शरीर अनंत में विचरण करता है। सनातन ही शाश्वत और सत्य है।

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